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LIC Jeevan Utsav Plan (771)

 LIC Jeevan Utsav Plan (771) – Features, Benefits & Maturity Details 1. योजना का परिचय LIC Jeevan Utsav Plan (प्लान नंबर 771) एक Whole Life Assurance Plan है जो गारंटीड रिटर्न, जीवन भर कवर और नियमित इनकम की सुविधा प्रदान करता है। यह नॉन-लिंक्ड, गारंटीड बेनिफिट वाली योजना है जिसमें आपको लाइफ टाइम तक इनकम मिलती है और आपके परिवार को सिक्योरिटी भी। --- 2. मुख्य विशेषताएँ प्लान टाइप: Whole Life Assurance (गारंटीड बेनिफिट) एंट्री एज: 90 दिन से 65 वर्ष तक पॉलिसी टर्म: आजीवन प्रीमियम पेमेंट टर्म: 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 15 या 16 साल ग्रेस पीरियड: 30 दिन (वार्षिक/अर्धवार्षिक/त्रैमासिक) और 15 दिन (मासिक) लोन सुविधा: पॉलिसी के Surrender Value पर उपलब्ध 3. गारंटीड एडिशन (Guaranteed Additions) पॉलिसी के पहले 5 साल में ₹40 प्रति 1,000 सम एश्योर्ड 6वें साल से प्रीमियम पेमेंट समाप्त होने तक ₹55 प्रति 1,000 प्रीमियम खत्म होने के बाद भी पॉलिसी चालू रहेगी और आपको जीवन भर 10% वार्षिक इनकम मिलेगी --- 4. लाभ A. मच्योरिटी बेनिफिट: यह एक Whole Life Plan है, इसलिए मच्योरिटी पारंपरिक रूप से नहीं ह...

श्रीकृष्ण की जन्मभूमि पर न्याय की पुकार: हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह को विवादित मानने से किया इनकार"

 


🕌 मथुरा शाही ईदगाह विवाद पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: हिंदू पक्ष को झटका, मस्जिद को 'विवादित ढांचा' घोषित करने से इनकार


लेखक: कमलेश तिवारी | दिनांक: 4 जुलाई 2025


मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर वर्षों से चली आ रही कानूनी लड़ाई में एक अहम मोड़ आया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें यह मांग की गई थी कि शाही ईदगाह मस्जिद को "विवादित ढांचा" घोषित किया जाए। कोर्ट के इस फैसले से हिंदू पक्ष को झटका लगा है, जबकि मुस्लिम पक्ष ने राहत की सांस ली है।


🌸 क्या है पूरा मामला?


यह मामला उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है। हिंदू संगठनों का दावा है कि जहां आज शाही ईदगाह मस्जिद मौजूद है, वहीं भगवान श्रीकृष्ण का वास्तविक जन्मस्थान है। उनका कहना है कि मुगल काल में जबरन इस स्थान पर मस्जिद का निर्माण करवाया गया था।


वहीं मुस्लिम पक्ष का तर्क है कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह ट्रस्ट के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत दोनों पक्ष इस जमीन पर अपनी-अपनी धार्मिक गतिविधियाँ करते आए हैं। अब इतने सालों बाद इस समझौते को चुनौती देना अनुचित है।


⚖️ कोर्ट ने क्या कहा?


इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अपने फैसले में कहा कि केवल इतिहास, भावनाओं या मान्यताओं के आधार पर किसी भी इमारत को "विवादित ढांचा" घोषित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि वर्तमान में कोई ठोस आधार नहीं है जिससे यह साबित किया जा सके कि मस्जिद के स्थान पर कोई मंदिर था जिसे तोड़कर यह ढांचा खड़ा किया गया।


हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 1968 के समझौते को चुनौती देने के लिए कोई नया और वैधानिक कारण नहीं बताया गया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को सलाह दी कि यदि उनके पास कोई पुख्ता सबूत हैं, तो वे उचित प्रक्रिया से कोर्ट में पेश करें।


🧩 फैसले का प्रभाव


इस फैसले से एक ओर जहां मुस्लिम पक्ष को राहत मिली है, वहीं हिंदू संगठनों में निराशा देखी जा रही है। विश्व हिंदू परिषद और अन्य संगठनों ने फैसले पर नाराजगी जताई है और इसे चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही है। उनका कहना है कि यह केवल आस्था का नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का मामला है।


वहीं मुस्लिम संगठनों ने हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि इससे देश में सांप्रदायिक सौहार्द और कानून के प्रति विश्वास मजबूत होगा।


🕊️ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


मथुरा को भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि के रूप में जाना जाता है और यह भारत के सबसे प्राचीन धार्मिक स्थलों में से एक है। वहीं शाही ईदगाह मस्जिद मुगल शासक औरंगज़ेब के काल में 17वीं शताब्दी में बनवाई गई थी। इतिहासकारों में इस बात को लेकर मतभेद हैं कि क्या मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी या नहीं।


1968 में जब दोनों पक्षों ने आपसी समझौते के तहत मस्जिद और मंदिर के बीच स्पष्ट सीमाएं तय की थीं, तब से यह स्थान अपेक्षाकृत शांत रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में एक बार फिर यह मुद्दा गरमाने लगा है।


🔍 आगे क्या?


हिंदू पक्ष के कुछ वकीलों ने साफ संकेत दिए हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे। उनका तर्क है कि जब अयोध्या मामले में ऐतिहासिक साक्ष्यों और पुरातात्विक जांच को आधार बनाकर फैसला हुआ, तो मथुरा मामले में भी गहराई से जांच की जरूरत है।


वहीं कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया है कि धर्म के ऐसे संवेदनशील मामलों में न्यायिक प्रक्रिया में जल्दबाज़ी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह समाज में तनाव को जन्म दे सकती है।


📣 समाज की भूमिका


यह जरूरी है कि ऐसे संवेदनशील मामलों में जनता भावनाओं में बहकर प्रतिक्रिया न दे। न्यायपालिका की भूमिका संविधान के तहत न्याय देना है, न कि आस्था का परीक्षण करना। मथुरा जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक शहर की गरिमा को बनाये रखना हम सभी की जिम्मेदारी है।


📌 निष्कर्ष


इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला कानूनी दृष्टि से एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, लेकिन इसने मथुरा विवाद को पूरी तरह समाप्त नहीं किया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी जाती है और वहां से क्या रुख सामने आता है।


धार्मिक भावनाएं अपनी जगह हैं, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान और सामाजिक शांति बनाए रखना आज के भारत की सबसे बड़ी जरूरत है।



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